रविवार, 3 अगस्त 2014

इष्‍ट देव श्री बागेश्‍वर बाबा की स्‍थापना

श्री बागेश्‍वराय नम: 

हमारे पूर्वज कश्‍मीर के निवासी रहे है आज से लगभग पॉंच सौ वर्ष पूर्व मुगल बादशाहों के अत्‍याचारों से पीडीत होकर वहॉं से हटने का विचार बनाया, किवदंतियों के अनुसार पहले यहॉं से एक सौ इक्‍कीस बैलगाडियॉं लेकर चले, पहले साधन भी कुछ नही बैलगाडियॉं ही प्रमुख साधन हुआ करता थी, आगे चलकर सभी लोगो ने सोचा कि एक ही जगह सबको रहना ठीक नही रहेगा अतएव दो भागों में सभी लोग बट गए जिनको 60 एवं 61 के नाम से जाना गया, वही आगे चलकर साठ और इकसठ हम आप जानने लगे उसी क्रम में पुन: अत्‍याचार के भय से पहले जो लोग बचे हुए थे उसमें सभी लोग 16 बैलगाडियों में चले, आगे चलते-चलते गंगा नदी मिली उस नदी को पारकर तीन बैलगाडियॉं निकल गयी वह इसलिए निकल आयी कि उसमें अन्‍डू बैल नही थे जब अन्‍डू बैल नही होगें तब बैलगाडी छोटी वाली होगी शेष तेरह बैलगाडी उसी तरफ रह गयी, तेरह बैलगाडी कानपूर, लखनऊ, फैजाबाद, गोरखपुर, सुल्‍तानपुर, रायबरेली, बस्‍ती से होकर कलकत्‍ता, नेपाल आदि जगहों पर फैल गए, और अपना-अपना करोबार शुरू कर दिया , इधर तीन गाडी वालों ने अपना रास्‍ता धीरे-धीरे चलकर ग्राम सायर तहसील मौदाहा में रूके साथ में अपने इष्‍ट श्री बागेश्‍वर जी की लिंगमूर्ति भी लिये थे जिसका नित्‍य पूजन होता था जब वहॉं से आगे चलने के लिये सोचा तो समान सभी रख लिया पूजन का सामान रखने लगे तब उस जगह से जिसमें मूर्ति रखी थी उस जगह से वह हटी नही बस इस चमत्‍कार से हमारे पूर्वज अचम्भित रह गए यह देखकर तुरन्‍त उन्‍होने लिंगमूर्ति की स्‍थापना करवा दिये । हमारे पूर्वजों ने अपनी मेहनत से वहॉं पर मंदिर का निर्माण कराया ।

इस कथा से सभी सामाजिक स्‍वजातिय बंधुओं को अवगत कराया जाना आज की वर्तमान परिस्थितियों में आवश्‍यक होने से प्रस्‍तुत है । 

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