कन्यादान व पैर पूजी
कन्या को चुनरी या पीली साडी (मामा की पेरी) पहनाई जाती हा वर को मंडप में बुलाया जाता है कन्या के पिता भी दूल्हे के सामने मंडप में बैठते है पुरोहित जी के द्वारा पूजन चालू कर दिया जाता है कन्या की माता कन्या को लाती है कन्या माता-पिता के सीधे हाथ की तरफ बैठती है वर-कन्या की हथेली को हल्दी से पीला करते है इसके बाद दोनों पक्षों के पुरोहितों द्वारा मंत्रोचार होता है कन्यादान की परात रखी जाती है थाली में गंगाजल डालते है माता-पिता आटे की लोई के अंदर गुप्तदान (सोने का गहना) वर-वधु के हाथ में रख दी जाती है कन्या के भाई द्वारा उसमें गंगाजल पानी की धार धीरे-धीरे डालता है इस प्रकार माता-पिता द्वारा कन्यादान किया जाता है इसके बाद पैर पूजी की शुरूआत की जाती है, वर वधु दोनों के पैरों को तीन-तीन बार जल लेकर छूते है । इस प्रकार जोडे से पैर पूजी की जाती है । ठीक यही क्रम चाचा-चाची, मामा-मामी, बुआ-फूफा, दीदी-जीजा सभी पैर पूजी करते है । महिलाओं का मंगलगीत गाने का कार्यक्रम चालू रहता है ।
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