सतवासा
सर्वप्रथम प्रथम गर्भधारण करने पर स्त्री को श्रंगारमय कर उसकी गोद भरी जाती है, अत: पांचवे या सातवें में इस रस्म को किया जाता है जिसे पंचवासा या सतवासा कहते हैं, इस रस्म के लिए लडकी के मायके पक्ष द्वारा सामान आता है, पीली साडी श्रृंगार सामाग्री, चॉंवल, दही, फुल, मिठाई, पति-पत्नी दोनों को जोडे से बिठाकर रस्म की जाती है, दही चॉंवल, मिठाई फल से भगवान को भोग लगाकर पूजन किया जाता है, कई लोग भोजन में चना की दाल, चॉंवल, कढी, फुलौरी, उडददाल बडा, जोरीवा भी बनाते है, इस प्रकार सतवासा प्रथा को बनाए रखना चाहिए, ताकि समाज में निरोग, बलवान तथा बुद्धिमान बालको को बढा सकें, बालक (पुत्र) के जन्म के बाद सबसे पहले धर में फुलकांस (पुत्र) की थाली सजाई जाती है, कई लोग शौक से मंदिर तथा अपने सामाजिक बंधुओ के धरों बाजा बजवाते हैं । पिपरी का नेग-सासु द्वारा जच्चा रानी को पिपरी दी जाती है जिसका उन्हे नेग दिया जाता है ।
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