बारसा
जन्म से ग्यारहवें या बारहवें दिन किया जाता है दसलिए इसे बारसा कहते है, इस दिन जच्चा बच्चा को उबटन लगाकर नीमपानी से नहलाया जाता है, सूपे में आटे का सूरज-चॉंद बनाते है, जच्चा बच्चे को गोद में लेकर आंगन या छत पर पूर्व दिशा में सूरज की ओर मुहँ करके गोल-गोल धूमकर सूर्य भगवान को देखते हुए चांवल छीछते है, तथा बच्चे को सूरज दिखाया जाता है, भाई के धर बच्चा होने पर बहन (बधाई) चंगंलिया लेकर आती है, बधाई का सामान बाजे के साथ समीपस्थ मंदिर तक धुमाया जाता है तथा बहन जो सामान लाती है उसका उसे सवा गुना वापस दिया जाता है, मायके वाले भी बेटी-दामाद, नाती, नातिन, समधी तथा पूरे परिवारके लिए कपडे लाते है, पीतल की गगरी में लड्डू (सेठौरा) भर कर लाते है, बारसे के दिन बच्चे को पालने में डालने का रिवाज भी प्रचलित सा हो गया, बच्चे के कान में उसका नाम भी रखा जाता है ।
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