द्वाराचार
बारातीयों को यथोचित स्थान बैठाया जाता है दुल्हे को द्वार पर से लडकी का भाई चौक तक गोद में उठाकर लाता है अब पुरोहित वधु के पिता व वर द्वारा गौरी गणेश पूजन किया जाता है दुर्गा जनेऊ किया जाता है सजाई हुई कांसे की थाली से वर की आरती उतारते है भाई भी पूजन में बैठता है साले एवं जीजा ऐ दूसरे को माला पहनाना, मिठाई एवं पान खिलाना तथा एक दूसरे के गले मिलना करना करते है द्वार कलश में भेंट देना-मंडप के द्वार पर 2 सुहागन महिलाऍं दोनों तरु जल से भरा कलश जिस पर लोटा और दिया रखा जाता है लेकर खडी रहती है इस पर वर पक्ष वाले नगद रूपया दोनों को देतें है ।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें